तलब करे तो मैं अपनी आँखें भी दे दूँ
मगर ये लोग मेरी आँखों के ख्वाब मांगते है......
भरे बाजार से अक्सर मैं खाली हाथ आया हूँ
कभी ख्वाहिश नहीं होती तो कभी पैसे नहीं होते
यहाँ सब खामोश है कोई आवाज नहीं करता
सच बोलकर कोई किसी को नाराज नहीं करता
सीख नहीं पा रहा हु मीठे झूठ बोलने का हुनर
कड़वे सच से हमसे न जाने कितने लोग रूठ गए
हम ने रोती हुई आँखों को हंसाया है सदा
इससे से बेहतर इबादत तो नहीं होगी हमसे
हमारा क़त्ल करने की उनकी साजिश तो देखो ,
गुजरे जब करीब से , तो चेहरे से पर्दा हटा लिया
अपनी हार पर इतना शकुन था मुझे ,
जब उसने गले लगाया जितने के बाद
उसने हर नशा सामने लाकर रख दिया और कहाँ
सबसे बुरी लत कौन सी है , मैंने कहा तेरे प्यार की
आजकल देखभाल कर होते है प्यार के सौदे
वो दौर और थे जब प्यार अँधा होता था
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जो मेरे दिल मे चाहत है ओ सिर्फ
तुम्हारे लिये .....।